Friday, August 21, 2009

वो सुबह कभी तो आयेगी

वो सुबह कभी तो आयेगी….

इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा….
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा….
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गायेगी….

वो सुबह कभी तो आयेगी….

जिस सुबह की खातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं….
जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं….
इन भूखी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमायेगी….

वो सुबह कभी तो आयेगी….

माना के अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं….
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं….
इन्सानों की इज़्ज़त जब झूठे सिक्कों में न तोली जायेगी….

वो सुबह कभी तो आयेगी….

दौलत के लिये जब औरत की इस्मत को ना बेचा जायेगा….
चाहत को ना कुचला जायेगा, इज़्ज़त को ना बेचा जायेगा….
अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शर्मायेगी….

वो सुबह कभी तो आयेगी….

बीतेंगे कभी तो दिन आखिर ये भूख के और बेकारी के….
टूटेंगे कभी तो बुत आखिर दौलत की इजारादारी के….
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी….

वो सुबह कभी तो आयेगी….

मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फांकेगा….
मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीख न मांगेगा….
हक़ मांगने वालों को जिस दिन सुली न दिखाई जायेगी….

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