Thursday, October 1, 2009

जोक करो वरना जोंक बन जाओगे

जोक करो वरना जोंक बन जाओगे

चुटकुलों की भी अपनी खूबसूरती होती है क्योंकि वह हँसाते हैं। खुले दिल से हँसने पर आदमी ऊर्जा से भर जाता है। शोधकर्ताओं ने लोगों के हँसने के बाद के अनुभवों और मस्तिष्क के स्कैन के आधार पर जो निष्कर्ष निकाले है, उनके अनुसार हंसने से दिमाग के सभी भागों कि एक्सरसाइज हो जाती है। इसी प्रकार एक शोध में पाया गया है कि जो बुजुर्ग हँसना खिलखिलाना बंद कर देते हैं, उनकी याददाश्त जल्दी ही कमजोर हो जाती है। इसके पीछे भी वैज्ञानिकों का यही तर्क था कि हँसने से मस्तिष्क के तमाम हिस्सों में रक्त का संचार बढ़ता है, स्फूर्ति आती है और मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ जाती है। हँसी को कई भागों में बाँटा जा सकता है जो हल्की सी मुस्कान से प्रारम्भ होकर ठहाके तक में तब्दील हो जाती है और हँसी के मारे पेट में बल पड़ने लगते है। तब हँसने वाला अपनी हँसी रोके तब भी न रुके और हंसते-हंसते लोटपोट हो जाए। वैज्ञानिक इस प्रकार की ठहाकेदार हँसी को मानसिक–शारीरिक व्यायाम की संज्ञा देते हैं। इस प्रकार हँसने के बाद शरीर में बहुत हल्कापन महसूस होता है। अलग-अलग तरह के चुटकुलों के लिए दिमाग में प्रतिक्रिया भी अलग-अलग भागों से उठती है, परन्तु उनसे उठने वाले आनन्द की लहर की अनुभूति एक ही स्थान से होती है। दिमाग के उस भाग में जहां चुटकुले सुनते समय सबसे ज्यादा हलचल होती है उसे ‘फनी स्पॉट’ का नाम दिया गया है प्रयोग में यह भी देखा गया है कि घिसे-पिटे पुराने सपाट चुटकुले सुनते समय तो दिमाग में कोई प्रतिक्रिया नहीं होती थी। लेकिन मजेदार ट्वीस्ट लिए हुए दो मायने वाले चुटकुलों को सुनने से मनुष्य के दिमाग के कई भागों में हलचल होना शुरू हो जाती है। चरम आनन्द तो तब आता है जब चुटकुला एक ऐसे बिन्दु पर मुड़ जाता है जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते। तब यह नया अचानक मोड़ हमारी सारी तार्किकता को भुला देता है हमारे सारे तर्क हमारी सारी भाषाएं थोड़े समय के लिए हमें फिर से बच्चा बना देती है। पश्चिमी देश वाले समझते है कि हममे ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ अधिक है लेकिन हास्य का जो सहज भाग भारत की जनता में है वह अन्य किसी देश में हो ही नहीं सकता। जीवन में कितनी ही परेशानियाँ क्यों न हों लेकिन इसके बाद भी हम भारतीय हँसने-मुस्कराने ठहाके लगाने में नहीं चूकते हैं।